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प्रकृति को बेहतर बनाने के लिए वैज्ञानिकों को ‘शुभ’ के लिए खोज करनी होगी – जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जी

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प्रकृति को बेहतर बनाने के लिए वैज्ञानिकों को ‘शुभ’ के लिए खोज करनी होगी – जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जी

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन, हिलसेंकी, फिनलैंड


28 अगस्त 2024 को तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सम्मेलन का समापन हिलसेंकी, फिनलैंड में हुआ। इस सम्मेलन में दुनियाभर के वैज्ञानिकों ने भाग लिया। सम्मेलन के समापन अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर जलपुरुष राजेंद्र सिंह जी ने कहा कि, पिछले 200 वर्षों में हमारे विज्ञान ने आवश्यकता की पूर्ति के लिए कई आविष्कार किए है। इसलिए आवश्यकता के आविष्कार की जननी ‘विज्ञान’ बन गया। लेकिन यह अविष्कार केवल मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हुए है; जिसके कारण प्रकृति में भयानक विनाश हो रहे है। इससे प्रकृति का शोषण, अतिक्रमण और प्रदूषण अति तीव्र गति से बढ़ा है। जिसका परिणाम पूरी दुनिया में बढ़ रहे जलवायु परिवर्तन, बाढ़ और सुखाड़ है।

विज्ञान ने मानवीय लालच की पूर्ति अर्थात् लाभ के लिए ही काम किया है। विज्ञान में जो काम हुए है, उनमें लाभ प्रबल बन गया है। जब मनुष्य लालची बनकर नई खोज ‘एटम बम, मशीन, युद्ध की सामग्री, हथियार बनाता है, उसमें सबसे ज्यादा लाभ दिखता है। इस लालच में ही विज्ञान को मनुष्य अपने उपयोग के लिए उपयोगी बनता चला गया।
आगे कहा कि, 3 दिनों तक सभी वैज्ञानिकों की प्रस्तुतियां सुनने और देखने के बाद लगता है कि, जितने भी शोध हुए है, वह केवल प्रकृति के शोषण के तरीके खोज रहे हैं। जिसके कारण प्रदूषण बढ़ रहा है और चंद लोगो को बड़ी मशीनों के साथ ताकतवर बनाकर, प्रकृति पर अतिक्रमण करने के लिए तैयार कर रहा हैं। यह तैयारी प्रकृति के विनाश की है। प्रकृति के विनाश की ऐसी तैयारियों से हमारा विनाश भी सुनिश्चित है।
इन शोधों से नई – नई जरूरतें और नई नई समस्याएं सामने आ रही है। इन जरूरतों का तो अंत नहीं होगा लेकिन हम सब का अंत हो जाएगा। यदि वैज्ञानिक कुछ बेहतर दुनिया बनाने का सपना देखते हैं; तो उन्हें प्रकृति के पोषण लिए सोचना ही पड़ेगा। जब तक यह प्रकृति बेहतर नहीं होगी , तब तक हमारा जीवन भी बेहतर नहीं हो सकता।

हमे अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रकृति को बेहतर बनाना ही होगा। प्रकृति को बेहतर बनाने के लिए वैज्ञानिकों को सबके ‘शुभ’ के लिए खोज करनी होगी। अंग्रेज़ी में उसे ‘सस्टेनेबिलिटी’ कहते है और भारत के लोग इसे ही हिंदी में ‘शुभ; बोलते हैं। वैज्ञानिकों को सस्टेनेबिलिटी के लिए केवल अपने शोध को उल्टा करना है। अभी तक प्रकृति का कम से कम समय में, ज्यादा से ज्यादा शोषण करने की तकनीक ढूंढते थे, अब प्रकृति का शोषण किए बिना हम अधिक से अधिक प्रकृति के पोषण के शोध करने होंगे ।
शुभ के शोध से ही प्रकृति समृद्धि के रास्ते पर चलेगी और प्रकृति को हमे देने की धारक क्षमता बढ़ जाएगी। प्रकृति की धारक क्षमता बढ़ाने के लिए अब नए शोध करने की जरूरत है। इसके लिए आज से ही यह तय करना होगा कि, हमारी सारी शोध प्रकृति के पंच महाभूतों या अवयवों को पोषित करने के काम में जुटे।
जिस प्रकार पानी पर शोध करके वैज्ञानिकों ने पता लगा लिया कि, पानी H2O से बना है। विज्ञान में H2O और S2O दोनों एक कैटेगरी में आते हैं। H2O प्रकृति की रचना करने का अवयव जल है और S2O प्रकृति को दूषित और प्रदूषित करने का अवयव है। इसलिए वैज्ञानिकों को यह सोचना होगा कि, हमारी शोध प्रकृति के निर्माण करने वाले तत्वों पर हो। जब इस रास्ते पर चलेंगे तो प्रकृति खुद देने वाली बन जाएगी। इसलिए नए शोध प्रकृति के रक्षण-संरक्षण और पोषण के लिए हो।
आगे सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि, हमे आगे बढ़ाने के रास्ते प्रकृति ने बहुत बनाए है; लेकिन जब हम प्रकृति का सम्मान किए बिना अन्य दूसरे रास्ते पकड़ लेते हैं; तब जीवन में बिगाड़ आ जाता है। इस बिगाड़ से बचने के लिए प्रकृति के चक्र को संतुलित बनाए रखने की जरूरत है। अब हमे ऐसे कार्य करने होंगे जिससे प्रकृति के चक्र में कोई बिगाड़ ना आए। जब हम प्रकृति के चक्र को बनाने वाला विज्ञान काम में लेंगे ;तो हमारा जीवन समृद्ध बनेगा। हम सब का जीवन एक दूसरे के साथ जुड़ा है । इसलिए इस जुड़ाव को समझकर और अपने जीवन को समग्रता से देखें; तब हमारी शोध भी समग्रता से आगे बढ़ेगी।
सम्मेलन के अंत में कहा कि, विज्ञान ने जो अवयवों का समीकरण बनाया है, उसमें संवेदना नहीं है। एक जमाना था जब हम संवेदना रहित जीवन को ही आगे बढाना चाहते थे लेकिन अब समय बदल रहा है, हमें एक संवेदनशील जीवन बनाने की जरूरत है। तभी हम अपने साझे भविष्य की दिशा में आगे बढ़ेंगे। हम अपने संवेदनशील जीवन से ही आगे के रास्ते ढूंढ सकते हैं, जिससे प्रकृति और मानवता में दूरियां नहीं बढ़ेगी बल्कि प्रकृति और मानवता की एकता बढ़ेगी।
अब इस बात की जरूरत है कि, हम शोध को विखंडित ना करें; समग्रता से काम करें। जिससे हमारा जीवन संपूर्णता की तरफ आगे बढ़ जायेगा। यही हमारे जीवन का एकमात्र रास्ता है। इसलिए अब वैज्ञानिकों को प्रकृति के प्यार व सम्मान में प्रकृति और मानवता के संबंधों को गहरा करके, समग्रता से काम करना चाहिए।
अब केवल मानव की जरूरत पूरी करने के लिए विज्ञान को उपयोग करने की जरूरत नहीं है। विज्ञान केवल लाभ के लिए नहीं बल्कि विज्ञान शुभ के लिए होना चाहिए। सब वैज्ञानिकों को यह लक्ष्य बनना चाहिए कि, हम विज्ञान को केवल लाभ के लिए उपयोग नहीं करेंगे ; बल्कि विज्ञान को सबके शुभ के लिए उपयोग करेंगे। शुभ के लिए उपयोग करने की ही शोध करेंगे। इस सम्मेलन के समापन में पर हमे प्रकृति के पोषण का विज्ञान अपनाने के लिए संकल्पित हो जाएं और उसी दिशा में काम शुरू करें।


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गोदावरी शुक्राचार्य

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