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गाय की उपस्थिति का दुनिया के पारिस्थितिकी तंत्र में सर्वोपरि स्थान है :- डॉ राजेन्द्र सिंह जी अंतरराष्ट्रीय जलपुरुष 

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गाय की उपस्थिति का दुनिया के पारिस्थितिकी तंत्र में सर्वोपरि स्थान है :- डॉ राजेन्द्र सिंह जी अंतरराष्ट्रीय जलपुरुष 


मैडेजिन कोलंबिया, दक्षिण अमेरिक

12 नवंबर 2024 को यात्रा सेनहोजेसीतो से मैडेजिन कोलंबिया, दक्षिण अमेरिका पहुंची। यहां डिफेंड सेक्रड एलायंस के सदस्यों के साथ बैठक हुई। इस दौरान जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जी से सवाल पूछा कि, भारत में गाय को “होली मदर“ क्यों कहा जाता है? हम तो उसको एक सामान्य कैटल की तरह ही देखते हैं, लेकिन भारत के लोग गौ माता, राष्ट्र माता और बहुत सम्मानजनक मां जैसा व्यवहार करते हैं। ऐसा क्यों है?


इस सवाल का बहुत विस्तार से जवाब देते हुए जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जी ने कहा कि, भारत के लोग जानते हैं कि, इस पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में किन जीवों का क्या योगदान है? जो जीव अपने जीवन से इस प्रकृति को समृद्ध करता है और जिसकी उपस्थिति से बहुत सारे दूसरे जीवों को समृद्ध होने में मदद मिलती है; उसी को भारतीय लोग सम्मान देकर, समाज के बीच चेतना बना कर रखते हैं। इस पशु से हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को हानि नहीं है। जिन जीवों की उपस्थिति से हमारी जैव विविधता, परिस्थितिकी में किसी दूसरे जीव-जंतुओं के जीवन पर किसी भी तरह का दुष्प्रभाव न पड़ता हो, उस पशु को भारत के प्राचीन ऋषि-मनीषियों और वैज्ञानिकों ने अच्छे से समझ लिया था। उन्होंने अच्छी तरह से समझ लिया था कि, गाय की उपस्थिति से पहाड़, नदियां और धरती का क्षरण रुकता है, जबकि दूसरे पशुओं की संख्या बढ़ने पर क्षरण होता है ।
गाय अपने जीवन को बनाए रखने के लिए प्रकृति और मनुष्य से बहुत कम लेती है। गाय जितना लेती है, उससे ज्यादा उपयोगी और महत्वपूर्ण बनाकर हमें प्रदान करती है। गाय का दूध, दही, घी गोबर, मूत्र और हर एक चीज इंसानों के लिए और जैव विविधता के लिए बहुत कारगर और सहायक होती है। इसीलिए भारतीय लोगों ने इस तंत्र के सबसे महत्वपूर्ण जीव गाय को ’माता’ कहा है। जब तक गाय माता रहेगी, तभी तक यह पृथ्वी और ब्रह्मांड बना रहेगा। यदि इस ब्रह्मांड से यह गौ माता का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, तो ब्रह्मांड भी टिकेगा नहीं। यह इतनी बड़ी बात भारत के प्राचीन वैज्ञानिकों ने बहुत पहले कह दी थी। तब से यह बात भारतीय जन-मानस में ठीक से बैठ गई। भारतीय जन-मानस इस जीव (गौ माता) को अपनी धरोहर, धराड़ी और विरासत मानता है।
जब कोई समाज किसी पेड़-पौधे या जीव-जन्तु को अपनी धराड़ी मान लेता है, तो वह उसके लिए एक पवित्र देवी-देवता की भूमिका में आ जाता है। इसीलिए प्राचीन काल से ही भारतीयों के जीवन में गाय को अत्यन्त महत्वपूर्ण समझ गया था। गाय की उपस्थिति से किसी पर भी कोई बुरा असर नहीं होता, बल्कि पूरे ब्रह्मांड की जैव विविधता के लिए गाय का होना बहुत जरूरी है। इसीलिए भारत का जन-मानस इसे गाय माता या गौ माता कहता है।
अन्यत्र, दुनिया के लोग पशुओं को अपनी जरूरत पूरी करने वाले भौतिक तंत्र के रूप में देखते हैं, लेकिन भारतीय लोग इन्हें भौतिक तंत्र के रूप में देखने से पहले उनको आत्मिक और आंतरिक रूप में देखते हैं। भारत के लोग देखते हैं कि, गाय का इस सृष्टि में आंतरिक रूप में क्या योगदान है? गाय की उपस्थिति से दूसरों पर क्या प्रभाव होगा? इसको भारतीय लोग बहुत अच्छे से जानते थे। इसलिए प्राचीन भारतीय ज्ञान तंत्र में गाय का स्थान इंसानों से ऊपर माना गया था। भारतीय समाज के मन में यह बात दृढ़ता से बैठ गई थी कि, इंसान तो अपने लालच की पूर्ति के लिए दूसरों की पीड़ा को उतना नहीं समझेगा, लेकिन गाय की उपस्थिति मात्र से मानव जीवन और अन्य जीव-जन्तुओं पर एक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और किसी को कोई हानि भी नहीं होगी।
गाय की उपस्थिति को भारतीय ज्ञान तंत्र में परिस्थितिकी, सांस्कृतिक और सामाजिक व्यवस्था के साथ जोड़ दिया था, इसीलिए भारतीय लोगों ने गाय को मां कहना शुरू किया था। भारतीय संस्कृति में मां का सबसे ऊंचा स्थान होता है। जितना सम्मान वह अपनी जन्म देने वाली मां को देता था, उतना ही सम्मान और महत्व वह अपना पोषण करने वाली गौ माता को भी देता था। भारत में इतिहास के किसी भी कालखंड में गाय माता का महत्व कम नहीं हुआ, गाय का महत्व बराबर बढ़ता ही चला गया।
आज आर्थिकीकरण, खेती के उद्योगीकारण और अन्य कुछे बदलावों के बावजूद भी भारत के लोग आज भी गाय को मां कहकर मां जैसा सम्मान करते हैं। गाय की उपस्थिति का दुनिया के पारिस्थितिकी तंत्र में सर्वोपरि स्थान है। गाय का स्थान अन्य वन्य जीव- शेर, चीता, हाथी आदि से भी ज्यादा ऊंचा है।
भारतीयों के अहिंसामय जीवन में जीवों में सबसे बढ़ कर गाय को सबसे ऊंचा स्थान दिया गया है। गाय केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। दुनिया को गाय की महत्ता को समझना होगा। भारतीयों ने गाय को अपने सांस्कृतिक और सामाजिक व्यवहार और संस्कारों में मां कहना शुरू किया था। कोलंबिया के लिए भी गाय भारत की तरह ही महत्वपूर्ण है, लेकिन कोलंबिया के लोग गाय को कैटल के रूप में देखते हैं। भारत के लोग गाय का सिर्फ दूध पीते हैं, कोलम्बिया को यह भी समझने की जरूरत है कि गाय को भोज्य सामग्री मानकर उपयोग नहीं करना चाहिए। कोलंबिया के लोगों को यह बात ध्यान में लाने की जरूरत है कि गाय का आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। गाय को आप केवल अपने लिए ही मत मानिए, यह पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अति आवश्यक है।
कोलम्बिया के लोग गाय को काटकर नदी में डालते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि यह बिलकुल भी उचित नहीं है। इसके लिए एक सुचारू व्यवस्था बनानी होगी, क्योंकि नदी में फेंकने से पूरा वातावरण दूषित होता है। इस विषय पर गंभीरता से चिंतन करके, हल निकालना होगा। गाय के महत्वपूर्ण को समझने के लिए आपको भारतीय ज्ञान तंत्र को समझना होगा, जिसमें गाय के महत्व को सर्वोपरि माना गया है।

इस वक्तव्य के बाद तीर्थ बचाओ जुड़ाव के साथियों के साथ आगे की कार्य योजना पर चर्चा हुई।

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गोदावरी शुक्राचार्य

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