स्वराज विमर्श जलयात्रा
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स्थान- सेनहोजेसीतो कोलंबिया, दक्षिण अमेरिका
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नदी यात्रा और आदिवासी विश्वविद्यालय में संवाद
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दिनांक 4-5 नवम्बर 2024
4 नवंबर 2024 को स्वराज विमर्श यात्रा सेनहोजेसीतो कोलंबिया, दक्षिण अमेरिका में रही। यहां शांति समुदाय (कौमूनी दाद दे पाज़) के साथियों के साथ जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने संवाद किया। यह सेनहोजेसीतो क्षेत्र अभी अहिंसक बदलाव के रास्ते पर है। यहां का शांति समुदाय (कौमूनी दाद दे पाज़) 27 छोटे-छोटे गांव और 27 समुदायों के साथ अपटाटाडो क्षेत्र में बसा है। यह पूरा क्षेत्र तीन पहाड़ी श्रृंखलाओं के बीच में स्थित है। समुदाय के इन 27 गांवों में एक जैसे ही सिद्धांत की पालना होती है। इनका सिद्धांत है कि, कोई भी व्यक्ति हथियार नहीं रखेगा। कोई भी हिंसक युद्ध का समर्थन नहीं करेगा। हिंसक हमले का साथ नहीं देगा। हिंसक गतिविधियों में शामिल नहीं होगा। कोई भी गोरिल्ला लोगों को किसी भी तरह खाने-पीने, रहने आदि का सहयोग नहीं करेगा। जिन-जिन लोगों ने इस सिद्धांत को माना, उन सभी लोगों को इस शांति समुदाय में शामिल किया और उनका विधिवत पंजीकरण होता है।शांति समुदाय ने अहिंसक रास्ता 27 साल पहले महात्मा गांधी से सीखकर अपनाया था। महात्मा गांधी के सिद्धांतों से चलने वाले यहां के पादरी ‘खब्येर’ जी की उम्र 72 वर्ष है लेकिन यह रात – दिन सक्रिय युवा की तरह काम करते है। इन्होंने महात्मा गांधी का रास्ता अपनाया है। यह विश्वविद्यालय में आयोजित वार्षिक उत्सव समारोह में शांति समुदाय के विचार संरक्षकों और सिद्धांत को माननेवाले आदि लोगों बुलाते हैं। इसीलिए ही भारत से जलपुरुष राजेंद्र सिंह जी को यहां बुलाया गया है।पादरी ‘खब्येर’ जी इस गांव में आए तो उन्होंने कहा था कि, यदि आपके यहां रहना और जीना सीखना है, तो महात्मा गांधी का रास्ता ही हमें यहां सत्य के आग्रह पर टिका सकता है। यहां के सब लोग तो महात्मा गांधी को नहीं जानते थे, पर इनके पादरी ‘खब्येर इरालदो’ जी महात्मा गांधी को जानते थे। इस समुदाय के सिद्धांत ही इनकी शक्ति है। यह़ समुदाय के साथ रहकर लोगों को हिंसा मुक्त जीवन जीने का रास्ता सिखा रहे है। इनके साथ अब बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय लोग नैतिक शक्ति के साथ जुड़े हैं। यहां शांति समुदाय की बहुत सक्रिय टीम काम कर रही है। यह पूरा क्षेत्र बापू की उपस्थिति दर्ज करता है। मुझे अभी इनके बीच आए आज 6 दिन हुए है। अपने पिछले 50 सालों के सामाजिक काम की प्रेरणा महात्मा गांधी , विनोबा भावे, जयप्रकाश नारायण से ली है। जिस ग्राम स्वराज की कल्पना बापू ने हमें कराई थी, वो कल्पना संपूर्ण रूप से यहां दिखती है। यह समुदाय अपने खाने का सामान खुद पैदा करते हैं, जीवन जीने की सभी जरुरी चीज यह खुद बना लेते हैं। खुद जीवन के लिए पैदा करना और जीवन को चलाने के लिए खुद बनाना, इनके जीवन का हिस्सा हो गया है।इसलिए इस दक्षिण अमेरिका क्षेत्र में महात्मा गांधी की जीवन उपस्थित नजर आती है। यदि महात्मा गांधी को एक जीवंत रूप यहां देखा जा सकता है। यह क्षेत्र दक्षिण अमेरिका के बिल्कुल सीमा पर है। यहां मैं जो कुछ देख रहा हूं उससे आनंदित भी हैं और दुखी भी है। बापू का जिस देश में जन्म हुआ, उस देश में हम बापू के विचारों को क्रियान्वित नहीं कर पाए, जबकि हम अपने आपको बापू को तीसरी पीढ़ी मानते है। यह तीन पीढ़ी जाने के बाद बापू के रास्ते पर चलने वाले आज भी भारत में लाखों लोग हैं लाखों जगह पर अच्छे काम भी हो रहे हैं। टुकड़ों-टुकड़ों में बापू का काम भारत में भी बहुत अच्छा है; लेकिन यहां (कौमूनी दाद दे पाज) शांति समुदाय में गांधी का संपूर्ण दर्शन होता है। ऐसा ही लगता है कि, गांधी अंग्रेजों से जिस काल में लड़ रहे थे और जिस काल में वहां हिंसा थी। तब यहां के लोग पैरामिलिट्री और गोरिल्ला से दोनों से संघर्ष करते रहे थे। अभी इस क्षेत्र से गोरिल्ला सेना जरूर खत्म हो गई हैं लेकिन पैरामिलिट्री का दबाव लोगों के ऊपर बहुत है। ऐसे हालात में भी यह अपने गांवों में अहिंसक सिद्धांत अपनाते है।
5 नवंबर 2024 को तरुण भारत संघ के 50 वें वर्ष के स्वर्णम अवसर पर शांति समुदाय (कौमूनी दाद दे पाज़), सेनहोजेसीतो कोलंबिया, दक्षिण अमेरिका के आदिवासी विश्वविद्यालय में तरुण भारत संघ के अनुभवों को जलपुरुष राजेंद्र सिंह जी ने रखा और नदी यात्रा की।* यहां सबसे पहले शांति समुदाय (कौमूनी दाद दे पाज़) समुदाय के सभी लोगों के साथ जलपुरुष जी ने नदी यात्रा की। इस नदी यात्रा में जल संरक्षण के कामों की संभावनाओं को तलाशा। इस अवसर पर शांति समुदाय को जलपुरुष राजेंद्र सिंह जी ने नदी के अंग, प्रत्यंग और सम्पूर्ण नदी दर्शन समझाया। इन्होनें समझाया कि, नदी जंगल में कैसे बनती और चलती है? नदी को बनाने का काम प्रकृति कैसे करती है? नदी कैसे जीवन देती हैं? नदी का प्रवाह और हमारे जीवन का प्रवाह कैसे जुड़ा है? जब नदियां सूखती है तो सभ्यतें भी कैसे मर जाती है? इत्यादी।जलपुरुष जी ने बताया कि, भारत में सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन अंग्रेजों के राज तक चलता रहा। अंग्रेजों ने इस प्रबंधन को तोड़ दिया था। अंग्रेजों के काल से सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन पीछे रह गया था। भारत में रक्षाबंधन के त्यौहार पर बहन अपने भाई से वृक्ष के संरक्षण का संकल्प लेकर रक्षा सूत्र बांधकर मनाती थी। अभी हमारे देश में बहन और भाई दोनों बराबर हैं, इसलिए बहन भाई दोनों मिलकर पेड़ों के राखी बांधते हैं। क्योंकि उनको मानवीय संरक्षण चाहिए। इसलिए मानव उनको संरक्षित करने का रक्षा सूत्र पेड़ों को बांधकर संकल्प लेता है । इसके अलावा जब शादी होते के साथ गांव में नई बहू आती थी, तो गांव की बुआ या दादी उसको सिखाती थीं कि, तालाब का जलक्षेत्र कहां है , जल भराव क्षेत्र कहां है । बच्चे उसमें गंदगी नहीं करें और वह खुद भी गंदगी ना करें। यह सब सिखाया समझाया जाता था और यह स्वच्छता का संस्कार था, यह लंबे समय तक भारत में चला । यह तब तक चला जब तक भारत भारतीय ज्ञान तंत्र मजबूत रहा लेकिन जब आधुनिक शिक्षा ने भारतीय ज्ञानतंत्र को पीछे छोड़कर, अपना स्थान आगे बना लिया तो पानी की पवित्रता और शुद्धता छूटती चली गई।इस यात्रा के जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जी ने यहां के आदिवासी विश्वविद्यालय में तरुण भारत संघ के 50 वर्षों का जीवन दर्शन विस्तार से बताया। श्री जलपुरुष राजेन्द्र सिंह ने बताया कि, तरुण भारत संघ में दिन की शुरुआत सर्वधर्म प्रार्थना से होती है। प्रार्थना के बाद कार्यकर्ताओं के साथ दिन भर के कामों पर चर्चा होती है। इस चर्चा के बाद सभी कार्यकर्ता स्वैच्छिक रूप से अपने कामों में लग जाते है। उसके बाद संध्या प्रार्थना होती है। जो दिन भर में काम हुए और जो नहीं हुए उन सभी कामों पर बातचीत होती है। उसके बाद तरुण भारत संघ द्वारा प्रारंभ में किए गए संघर्ष और गोपालपुर गांव की बदलाव की कहानी बताई कि, सबसे पहले गोपालपुरा गाँव में छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाने व स्वास्थ्य सेवा का कार्य शुरू किया। आस-पास के दूसरे गाँवों में भी जहाँँ तथा कथित विकास नहीं पहुँचा था, वहाँ बातचीत एवं कार्य शुरू हुआ। जैसे मांगु पटेल, बदरी, नानगराम, भगवाना, रामदयाल, कालू आदि गोपालपुरा वासियों का आना-जाना। तभासं के साथ बैठना तथा अपसी बातचीत काफी होने लगी थी। इसलिये तभासं का मन तो उनके साथ रम गया था।गोपालपुरा में भयंकर अकाल के कारण जहाँँ भूखे लोग गाँव छोड़कर दिल्ली अहमदाबाद चले गये। गाँव के सबसे बड़े जमीनदार मांगू पटेल के बेटे-पोते अहमदाबाद में मजदूरी करने गये थे, तभी गरीबतम नाथी का पति भी दिल्ली मकान चिनाई करने गया था। इस गाँव में आर्थिक सामाजिक बराबरी है। मांगू पटेल गोपालपुरा का मुखिया था, दूसरी तरफ नाथी सबसे गरीब बलाई परिवार की महिला है। परन्तु वह अपने सुख दुखः की बात मांगू पटेल, भगवाना, कालू या फिर कोई अन्य बड़ा-छोटा सभी के साथ बातचीत करती है। कंही कोई डर, ऊंचनीच, छुआछूत नहीं। भुखमरी, बेकारी तथा तबाही की छाया सबके ऊपर समान रूप से पड़ी है। इसी को समझने की चिन्ता अब हमें सताने लगी। “यहाँ आकर पहली बार हमारी शिक्षा के पूर्वागृहों का किला टूटा। अब गाँव के बुजुर्गों से सीखने की आवश्यकता महसूस हुई। मन को लगा यह समाज जो अपने आपको प्रकृति के क्रोध के आगे भी अड़िग बनाये हुये है, उसी से हमें सीखना होगा, तभी इनके साथ-साथ चलकर कुछ अच्छा किया जा सकेगा।रतोंधी ग्रस्त रोगियों की चिकित्सा तभासं ने शुरू कर दी। लोग ठीक होने लगे। तब मांगू काका ने मुझसे कहा कि, तेरी पढ़ाई व दवाई से काम नहीं चलेगा; हमें पानी चाहिए। फिर पानी का काम सीखकर तभासं ने जल संरक्षण कार्य पूरी समझ के साथ शुरू हुआ। जल की संरक्षण, प्रवन्धन की प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिकी और जल विज्ञान दो ही दिन में मांगू काका ने सिखा दिया था। बस यही से सीखकर यहां के लोगों के लिए लोक परम्परा से जल संरक्षण का रास्ता मिल गया था। तरुण भारत संघ ने गांव के बुजुर्ग लोगों से जल संरक्षण का काम सिखा था। गोपालपुरा में सबसे पहले चबूतरे वाले जोहड़ पर श्रमदान करके बनाया। उसके बाद मेवालों वाले बाँध का काम शुरू कर दिया। वहाँ गरीबतम महिला नाथी बलाई अपने साथ कुछ महिलाओं को साथ लेकर सबसे पहले काम पर लगी थी। जब पानी की बात सबको बात समझ में आ गई, और पूरा गाँव पूरे उत्साह से पानी के काम में लग गये। इसके बाद तो इस गाँव में एक के बाद एक काम होते चले गये। इन कामों को देखकर इनके रिश्तेदारों तथा आस-पास के गाँवों के लोगों ने भी अपने-अपने गाँवों में पानी के काम शुरू करवाए। काम फैलता गया। समाज के काम और तरुण भारत संघ के काम एक दूसरे के पूरक बन गए। सबसे पहले तरुण भारत संघ ने गोपालपुर गांव को एक आदर्श जल संरक्षण का एक नमूना बनाया। पानी के काम को व्यापक क्षेत्र में फैलाने के लिए तभासं ने जनभागीदारी से साल में तीन पद-यात्राएँ करने की परम्परा भी विकसित की। पहली पद-यात्रा ‘‘पेड़ लगाओ, जंगल बचाओ पद-यात्रा ’’ जो रक्षा-बन्धन से शुरू होती है; दूसरी ‘‘जोहड़ बनाओ, पानी बचाओ पद-यात्रा’’, जो देव उठनी एकादशी से शुरू होती है और तीसरी पद-यात्रा ‘‘ग्राम-स्वावलम्बन पद-यात्रा’’ है। इन पद-यात्राओं के माध्यम से आस-पास के ज़िलों में ही नहीं, राजस्थान के दूरवर्ती जिलों में भी पानी का काम फैलता चला गया। इन यात्राओं में तालाबों की साइट सिलेक्शनऔर सामुदायिक सहयोग जुटाने के लिए बातचीत की जाती है। इस सामुदायिक सहयोग के काम में कैसे सामाज सीखता है और समाज सीखकर कैसे दूसरों को सिखाता है। यात्रा में के दौरान कुछ गांव में यदि जरूरत होती है तो रुक कर श्रमदान किया जाता है। हर घर में बने खाद और बीज, हर खेत में रुके अपना पानी और मिट्टी। जिस तरह से महात्मा गांधी का ग्राम स्वराज था, उसी तरह के रास्ते पर चला था। इन यात्राओं ने तरुण भारत संघ के कामों को धीरे-धीरे सामुदायिक काम बना दिया। इन यात्राओं में होने वाली बातचीत से समाज ने अपने काम की जिम्मेदारी और हकदारी अपने ऊपर ले ली। यह तीन यात्राएं 1985 से अभी तक सतत चल रही है। इस यात्रा में इन दिनों थोड़ा बदलाव करके नदी के उद्गम से संगम तक यात्रा करते है।तभासं का जल संरक्षण के काम जमीन पर दिखाने लगा तब तरुण भारत संघ ने दिन रात मेहनत करके अपना काम बढ़ाने लगा। जिससे लोगों का विश्वास बढ़ता चला गया। आगे बताया कि, वर्ष 1992 में अरावली संरक्षण कानून बनवाया और चंबल के बागियों को किसानी में लाना सबसे बड़ी चुनौती थी, जिन्हे तरुण भारत संघ ने अवसर में बदल दिया। बंदूक धारियों को किसानी के काम में लगना शुरू किया और बेरोजगार हुए युवाओं को पानी के काम में लगा दिया था। इसी काल में यह बात समझ आया कि खनन के कारण कुएं सूख रहे है। तब तरुण भारत संघ ने सुप्रीम कोर्ट में जाकर मुकदमा लड़कर चार राज्यों में खानों को बंद करने की लड़ाई लड़ी और सुप्रीम कोर्ट में जीत कर खानों को बंद कराया। यह तरुण भारत संघ की बड़ी जीत थी । इससे तरुण भारत संघ की पहचान सत्याग्रही की बन गई, जिससे तरुण भारत संघ को सरकार और संस्थाएं बुलाकर काम सीखने लगी।तभासं के जल संरक्षण कामों से 1994-95 में पूरे साल पहली बार अरवरी नदी बही थी। इसी के साथ भारत सरकार ने पर्यावरण पुरस्कार दिया था। अरवरी का शुद्ध-सदानीरा बनकर बहना पूरी धरती पर पहली घटना थी। यह नदी फिर से सदैव बहती रहे। इस हेतु संसद में कानून बने। नदी क्षेत्र में फसल चक्र को वर्षा चक्र के साथ जोड़ने का बड़ा काम हुआ। बेरोजगार खनन मजदूर पानी संरक्षण करके मालिक बनने लगे।जन-सहभागिता से किये गये जल संरक्षण के काम को देखने-समझने व अरवरी नदी के सत्तर गाँवों के संगठन ‘‘अरवरी संसद्’’ को देखने तथा गाँव वालों की पीठ थपथपाने और उनको प्रोत्साहित करने के लिए 28 मार्च 2000 को भारत के तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति श्री के. आर नारायणन आए, उन्होंने अरवरी नदी के मध्य के गाँव हमीरपुर में आकर यहाँ के पानी के काम को देखा और यहीं पर अरवरी नदी के ऊपर के गाँव कोळ््याळा-भाँवता की ग्राम-सभा को एक लाख रुपये के चैक के रूप में ‘‘डाउन टू अर्थ पुरस्कार’’ भी दिया।भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री के. आर. नारायणन जी ने अलवर जिले के ग्राम हमीरपुर में यात्रा करके जो संदेश दिया है, वह पूरे देश के लिए महत्त्वपूर्ण व गौरव की बात है।उसके बाद भारत सरकार के विभिन्न मंत्रियों और अधिकारियों का जाना आना आरंभ हो गया था। इसी दौरान संघ के सरसंघ संचालक रज्जू भईया और के.सी. सुदर्शन भी तरुण भारत संघ का काम देखने कई बार आए। तरुण भारत संघ का काम बिना किसी दलगत स्वभाव के एक जैसा दिखने लगा था। सब जानने लगे थे यह संगठन गांधीयन विचारधारा से प्रभावित है। इसलिए अभी ने स्वीकार किया कि यह किसी के लिए भी घातक नहीं है।2001 में तरुण भारत संघ को एशिया का नोबेल प्राइज रैमन मैग्सेसे मिल गया था। उससे सामुदायिक विकेंद्रित काम की विधा बढ़ती गई। नवंबर 2003 में तरुण संघ के कामों को देखने के लिए इंग्लैंड के रहा प्रिंस चाल्स तभासं के कार्यक्षेत्र के गांव में पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने लगभग 6 किलो मीटर की यात्रा की। देखा कि गांव के लोगों ने किस तरह से पानी का काम किया है। इस काम देखकर प्रिंस चार्ल्स ने मुझे लंदन बुलाया और सम्मान किया था। वर्ष 2004 में तरुण जल विद्यापीठ“ की स्थापना की। तरुण जल विद्यापीठ का स्वरूप वर्तमान में चल रहे सरकारी व गैर सरकारी शिक्षण संस्थाओं के स्वरूप से बिल्कुल अलग होगा। यहाँ पर किसी भी तरह की उपाधि डिग्री नहीं दी जाएगी बल्कि जल संरक्षण के परंपरागत ज्ञान से कार्य करने की वास्तविक शिक्षा प्रदान की. जिससे प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति जल संरक्षण कार्य में समाज को अपनी सेवा दे सके।2005 वर्ष में संसद में गूंज कराने वाला वर्ष रहा था। इस वर्ष भारतीय संसद के लोक सभा अध्यक्ष और राज्य सभा उपाध्यक्ष ने मिलकर तरुण भारत संघ कामों पर दोनों सभा के सदस्यों को संबोधित करने का अवसर प्रदान किया। तरुण भारत संघ ने अपने अनुभव बांटे। इस दौरान सदस्यों ने पूछा की आप नदी जोड़ योजना और बड़े बांधों का विरोध क्यों करते है? तब तरुण भारत संघ का पक्ष था कि सरकार का लक्ष्य जब बड़ा काम हो जाता है तो छोटे काम छूट जाते है। बड़े कामों में खर्चा जायदा और लाभ बहुत कम होता है। जबकि छोटे कामों का प्रभाव प्रत्यक्ष होता है। नदी जोड़-तोड़ से लेकर भोजन, जीवन जन्म, औषधि, बात-विचार सभी कुछ अप्राकृतिक और कृत्रिम । यह संस्कार हमें कहां ले जायेंगे। नदी जोड़ विध्यंवस की तैयारी है । प्रकृति जिन नदी धाराओं झरनों, तालाबों वृक्षों और भूशिराओं के जरिए जल संरक्षण व शुद्धिकरण का धर्म निर्वाह करती है। बड़ी-बड़ी जल परियोजनाएं उनका विनाश करने पर तुली है। हमें प्राकृतिक दृष्टि कोण के साथ सतत्, सनातन, हमारे लिए जल संरचनाओं की रचना करती है, प्रकृति द्वारा हो रहे जल संरक्षण को आगे बढ़ाना उसमें सहयोग करना हमारा कर्तत्व है। जो समाज कभी प्रबन्धन और उपयोग दोनों पहलुओं पर समानता व न्याय का हामी था, वही उसकी पालना से पीछे हटने लगा परिणाम स्वरूप सामाजिक एकता व रचनात्मकता को पीछे ठेलकर द्वेष व विनाश आगे आ गए ।इन्ही दिनों समझा आया चंबल के लोग अपनी लाचारी, बेकारी और डर की बीमारी और फरारी में बंदूक उठाते थे। उन्हे बिना यह कहे कि बंदूक छोड़ दें। उससे पहले पानी का काम शुरू किया। तरुण भारत संघ ने यहां की महिलाओं को समझाया और महिलाओं से चंबल के कामों को सफलता मिली। इससे मेहेश्वरा नदी बहने लगी। तब तरुण भारत संघ को समझा आया कि, जब नदी बहती है तो वहां की सभ्यता और संस्कृति भी पुनर्जीवित होती है।तरुण भारत संघ के कामों से नदियां पुनर्जीवित होती गई। इसके बाद तरुण भारत संघ राजस्थान अलावा अन्य राज्यों में भी काम करने लगा। इसके किए तरुण भारत संघ ने राष्ट्रीय जल बिरादरी का गठन किया। जिससे जल संरक्षण काम को विस्तार मिला। अभी तरुण भारत संघ लोगों के लिए जल विश्वविद्यालय बन गया है लेकिन यह कमरों का विश्व विद्यालय नही था। यह तो भारत के ज्ञान तंत्र से जल प्रबंधन का प्रत्यक्ष जमीनी काम के अनुभव का विश्व विद्यालय था। यह बिना किसी सरकारी मान्यता के हजारों लोगों को तैयार कर रहा है।इससे आगे का भी संवाद 6 व 7 नवंबर को भी जारी रहेगा।
!! जय गोदामाई जय त्र्यंबकराज जय शुक्राचार्य. !!