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हमें भारतीय आस्था के मूल ज्ञानतंत्र को समझकर अपनी पर्यावरण रक्षण परम्परा बनानी होगी :- डॉ राजेन्द्र सिंग जलपुरुष 

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हमें भारतीय आस्था के मूल ज्ञानतंत्र को समझकर अपनी पर्यावरण रक्षण परम्परा बनानी होगी :- डॉ राजेन्द्र सिंग जलपुरुष 


24 अक्टूबर 2024 को स्वराज विमर्श यात्रा जयपुर से नेशनल पीजी कॉलेज, लखनऊ पहुंची। यहां अंर्तराष्ट्रीय केमिस्ट्री कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। का्रंफेस में जलपुरुष राजेन्द्र सिंह जी ने मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए कहा कि, शोध का प्राथमिक लक्ष्य प्राकृतिक संसाधनों का रक्षण-संरक्षण कर अनुसंधान करना होना चाहिए। हमारा मूल परंपरागत ज्ञान ही भारत का विज्ञान था। इस विज्ञान में गणनाओं के साथ-साथ आत्मिक और मानवीय रिश्ता था। आत्मा और जीवन के भौतिक जरूरतों को पूरा करने वाली विज्ञान की गणनाओं से संवेदनापूर्व जुडा़ होता था। इसीलिए भारतीय वैज्ञानिक (ऋषि) समाज और सृष्टि के प्रति संवेदनशील होता था। जबकि आंकड़ों और गणनाओं में उलझे हुए वैज्ञानिकों में यह संवेदना नहीं बचती है।
मूल शोध आत्मिक अनुभूतियों के आधार पर होती है। जिन्हें गणनाओं से कसोटी पर कस के देखा जाता है लेकिन आधुनिक वैज्ञानिक शोध आंकड़ों के आधार पर एक वैचारिक बीज को मस्तिष्क में रखकर शोध करता है। इसीलिए वह शोध संवेदना, सद्भावना से दूर चली जाती है। ऐसे शोधकर्ता को आधुनिक वैज्ञानिक कहते हैं। जिसकी शोध में अनुभूति होती है उसका आत्मिक रिश्ता अपनी शोध और अनुभूति से जुड़ जाता है, वह शोध विद्या होती है।
अब हमारी भौतिकी हमें प्रकृति से दूर कर रही है जिसके कारण हमारे शरीर के आरोग्य और आत्मा की आनंद की अनुभूति नष्ट हो रही है। सुख-शांति, आरोग्य, आनंद हमें पुनः जीवित करना है तो प्रकृति के रक्षण-संरक्षण करने वाले मूलज्ञान को समझना होगा। जब से हमारे मूल व्यवहार, संस्कार और ज्ञान में कमी आई है तभी से हम आनंद की अनुभूति से वंचित हो रहे हैं। हमारी बुद्धि में जल के ज्ञान का अकाल (कमी) से धरती पर बाढ़ और सुखाड़ बढ़ने लगा है। इससे बचने हेतु प्रकृति-सृष्टि की घटनाओं, बाढ़-सुखाड़ से सहवरण करना होगा।
पंचमहाभूतों से हमारी ज्ञान व्यवस्था जुड़ी हुई है। वही हमारा भगवान था। इन्हीं को हम सभी कुछ मानते और जानते भी थे। ये ही हमारे देवता थे। इन्हीं को हम प्यार और सम्मान करते थे। इन्हीं के प्रति हमारी आस्था से हम जगत गुरू बन गये थे। जब भारतीय मूल आस्था में आया बदलाव तब भारत में अकाल-बाढ़ बढ़ता गया है। जीवन पद्धति बदली हम प्रकृति भोगी बनते गये। प्रकृति हमारे लिए है। हम भूल गये कि हम प्रकृति अंग है। आज तो हम प्राकृतिक नियंत्रा बन रहे हैं, प्रकृति का सम्मान करने वालो को भूल रहे हैं। यही भारतीय आस्था की गिरावट है। पर्यावरण पर संकट है। इस ंसकट से निपटने के लिए हमें भारतीय आस्था के मूल ज्ञानतंत्र को समझकर अपनी पर्यावरण रक्षण परम्परा बनानी होगी।

इसके बाद बायोमेडिकल रिसर्च के निदेशक प्रो. आलोक धवन ने कहा कि, हमारे पूरे जीवन में केमिस्ट्री शामिल है। जो हमें प्राब्लम बेस्ट टीचिंग और प्रोजेक्ट बेस्ड लर्निंग की ओर ले जाता है। प्राचार्य प्रो. देवेंद्र सिंह ने कहा कि, इस आयोजन से विद्यार्थियों में नई ऊर्जा का संचार हुआ है। कार्यक्रम के संयोजक केमिस्ट्री विभाग के हेड डॉ. विकास सिंह रहे। इस मौके पर वैज्ञानिक प्रो. अतुल गोयल, प्रो. वीके शर्मा, व करीबन 300 शोधार्थी व विद्यार्थी मौजूद रहे।

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गोदावरी शुक्राचार्य

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